Friday, March 31, 2017

सामाजिक विभेद

सामाजिक विभेदों को दूर करने के लिए और उपाय
होने चाहिए?
प पू सरसंघचालक - एक सदा के लिए चलने वाला उपाय है कि अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, आजीविका के और सामाजिक आचरण में, सभी भेदभावों को नकारते हुए उचित भूमिकाएं लेना। प्रत्यक्ष व्यवहार की बातों के लिए अपनी आदत बदलना। जैसे अनेक भाषाओं में जातिवाचक मुहावरे हैं। भेदभाव का जो युग था, उसमें तथाकथित ऐसी जातियों, जिनको पिछड़ा कहा जाता था, अस्पृश्य कहते थे, ऐसी जातियों को जरा छोटा स्थान देने वाली कहावतें, मुहावरे हैं। हम उनका उपयोग करते हैं, तो उसके पीछे निहित द्वेषभाव चाहे नहीं लाते हैं, परंतु शब्द तो अस्तित्व में है और जो भेदभाव के शिकार हुए हैं, उनके हृदय में घर कर गए हैं। हमको ऐसी आदतें बदलनी पड़ेंगी। मन और विचार सहमत होने के बावजूद शरीर की आदत हो जाती है, वह बदलनी होगी। बोलने की आदत बदलनी पड़ेगी। हमारा व्यवहार पुरानी विषमता को त्यागकर समतायुक्त हुआ कि नहीं -लोग इसकी परीक्षा करेंगे। खासकर वे लोग इसकी परीक्षा करेंगे, जिनको हमको जोड़ना है, जिन अपनों को फिर से अपना बनाना है। सहज व्यवहार में भी अपने आप को परिष्कृत बनाकर प्रयोग करना होगा। उदाहरणार्थ- मान लीजिए, मैं किसी के घर गया। मुझे प्यास नहीं है, पानी आया और मैंने कहा, पानी नहीं पीना है, तो मेरे हृदय में भले ही कुछ न हो, लेकिन वहां शंका खड़ी होती है कि हमारे यहां पानी नहीं पीना चाहते। पूजनीय गुरुजी ने एक बार बहुत अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया। एक स्वयंसेवक ने कहा कि मेरी झोंपड़ी में आएं, चाय पीने के लिए, पास में ही है। वह झोंपड़ी में रहने वाला स्वयंसेवक था। गुरुजी ने कहा, चलो। एक तो ऐसा वर्ग, दूसरा बहुत गरीब। गुरुजी गए तो एक-दो कार्यकर्ता भी साथ थे। आधी झोंपड़ी में यह भी दिख रहा था कि घर की माता चाय बना रही है। बर्तन गंदा जैसा था, छलनी नहीं थी, कपड़े से चाय छानी गई, कपड़ा भी कैसा था, चाय आई तो एक ने कहा, मैं चाय नहीं पीता, दूसरे ने कहा, सुबह से बहुत चाय पी चुका हूं। गुरुजी ने चाय पी ली। बाहर जाने के बाद कार्यकतार्ओं ने पूछा, गुरुजी आपने ऐसी चाय कैसे पी ली? गुरुजी ने कहा, आप लोग उसकी चाय देख रहे थे! मैं तो उसका प्रेम पी रहा था। यही सहजता रखिए। प्रेम-सम्मान समाज की जरूरत है। तो अपने व्यवहार को ऐसा रखना चाहिए जिससे उनकी प्रेम-सम्मान की अपेक्षा की पूर्ति हो। ऐसे व्यवहार की आदत डालनी पड़ेगी। दूसरा, सार्वजनिक जीवन में ऐसे प्रश्न आते हैं। अंतरजातीय विवाह होता है, विरोध भी खड़ा होता है। संघ के स्वयंसेवक उसके समर्थन में खड़े दिखने चाहिए। होना भी चाहिए और सामान्यत: ऐसा है भी। यदि कोई अंतरजातीय विवाहों के संदर्भ में सर्वेक्षण करे तो सबसे ज्यादा स्वयंसेवक ही मिलेंगे। अनौपचारिक चर्चा में कई बार यह अनुभव देखने में आया है। महाराष्ट्र का जो पहला अंतरजातीय विवाह था उससे दो संदेश गए थे। एक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का और दूसरा गुरुजी का। गुरुजी ने संघ के स्वयंसेवकों को ये लिखा था कि जो शारीरिक आकर्षण के चलते नहीं, बल्कि समाज में जो जाति प्रथा है, उसका विरोध दर्ज करने के लिए अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं, मैं उनके इस अंतरजातीय विवाह का समर्थन भी करता हूं और अंतरजातीय विवाह को शुभकामनाएं भी देता हूं।
संघ के स्वयंसेवकों की इस प्रकार की भूमिका सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए। स्वयंसेवक को किसी तात्कालिक भावनाओं में न बहते हुए, अहंकार में, इधर-उधर की चपेट में नहीं आना चाहिए। संघ के स्वयंसेवक समाज की एकात्मता, अखंडता, समरसता को ध्यान में रखकर भूमिका तय करें और उसका निर्भय रूप से निर्वहन करें, इसकी आवश्यकता है।

समरसता


  प्रश्न - समरसता संघ के स्वभाव में 1925 से ही रही है। आगे चलकर इस आग्रह के पीछे बालासाहब देवरस बड़ी प्रेरणा रहे। उनके योगदान को आप कैसे देखते हैं?

  प० पू० सरसंघचालक - हिन्दू संगठन समरसता के बिना असंभव ही है और इसलिए संपूर्ण हिन्दू समाज को एक करने के लिए उसकी दृष्टि भेदविहीन होनी, आवश्यक है। इसलिए समरसता की दृष्टि संघ के स्वभाव में ही है। परंतु संघ की शक्ति क्रमश: बढ़ी है। संघ में तो संघ के जन्म से ही यह व्यवहार है, परंतु बालासाहब जब सरसंघचालक बने, उस समय समाज द्वारा संघ से कुछ सुनने और कुछ मात्रा में उस पर विचार करने और प्रयोग करने की स्थिति भी बन रही थी। आज संघ की बात समाज सोचेगा, करेगा इसका परिमाण बहुत बड़ा है, तब उतना बड़ा नहीं था, लेकिन इसका प्रारंभ हो चुका था। संघ का यह समतामूलक, समरसतामूलक दृष्टिकोण समाज के लिए भी आवश्यक है। (यह दृष्टिकोण) समाज में भी जाना चाहिए। इस दृष्टि से सरसंघचालक बनते ही बालासाहब ने विषय रखा कि अब संघ का मुख्य ध्येय सामाजिक समरसता है। इसकी स्पष्टता स्वयंसेवकों में भी हो और समाज में भी हो, इसलिए बालासाहब ने बहुत सोच-समझकर वसंत व्याख्यानमाला का भाषण कुछ महीनों तक तैयारी के बाद दिया। संघ का इसके बारे में विचार, व्यवहार तो पहले से था लेकिन पीछे जो विचार प्रक्रिया थी, वह स्वयंसेवकों को भी स्पष्ट हो गई और समाज में भी एक संदेश गया।

Monday, March 20, 2017

RSS activity

RSS activities Last year Prathmic Shiksha Varg - 1 lakh youth participated throughout the country. First year - 17500 trainees participated in the 20 day training camps held throughout the country. 2nd year - 4130 trainees participated in the second year regional camps across the country. 3rd year - 973 trainees participated in the third year training camp at Nagpur. 57233 Shakas, 14896 weekly milans and 8226 monthly mandalis are running throughout the country. Seva Karyas run by swayamsevaks at 19121 seva bastis.

Saturday, February 25, 2017

नियम

पाँच व्यक्तिगत नैतिकता (क) शौच - शरीर और मन की शुद्धि (ख) संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना (ग) तप - स्वयं से अनुशाषित रहना (घ) स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना (च) ईश्वर-प्रणिधान - इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा

यम

पांच सामाजिक नैतिकता (क) अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को हानि नहीं पहुँचाना (ख) सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना (ग) अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना (घ) ब्रह्मचर्य - दो अर्थ हैं: चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना (च) अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना

Friday, February 24, 2017

Vidyanjali

Vidyanjali - (School Volunteer Programme) is an initiative of the Ministry of Human Resource Development, Department of School Education & Literacy to enhance community and private sector involvement in Government run elementary schools across the country under the overall aegis of the Sarva Shiksha Abhiyan. This programme has been envisaged to bring together people willing to volunteer their services at schools which really need them. The volunteers will act as mentors, confidantes and communicators with children. In consonance with this objective, MyGov in collaboration with Ministry of Human Resource Development has developed a mobile application for schools and other educational institutions to engage interested citizens in volunteering for such on-ground engagements. The application will enable interested volunteers to connect with government educational institutions including schools to mentor students. This mobile application would act as a nexus between the volunteers and government bodies under a Volunteer Management Program. Through this mobile application, mentors can interact with institutions directly and can contribute in the institution’s activity with relevant knowledge and skill set. The application is an interactive mobile platform which facilitates communication between the two stakeholders helping institutions to post their academic and non-academic requirements seeking suitable volunteers for the specified role. The prospective volunteers, users of the application, would be able to show their interest based on the available volunteering opportunities viewing the list ordered basis fetched user location. The application would boast of a separate dashboard for institutions and volunteers both, which would be inclusive of a map enabling feature of locating both the institution and the volunteer. The exact locations of volunteers and institutions would be view-able through pin markers on the map. The volunteer application would allow two-way search from the end of both the stakeholders. A volunteer would be able to seek activities and show his/her interest in the listed activities. Similarly, an institution would be able to search for volunteers who are using the app meeting their requirement, request for a volunteer, review a volunteer profile, and schedule a meeting for further action and appointment. Hence, the application would help connect keen volunteers with educational institutions for being able to associate and work with the institution on need basis plugging in the vacant spaces. This would not only bring satisfaction to the volunteers but also make the students’ experience seamless. An application to this effect would serve as a successful and innovative alternative to resolve temporary issues of missing or incompetent human resource faced by educational institutions.

International day of Yoga

International Day of Yoga is also called as the World Yoga Day. The idea of International Day of Yoga was first proposed by the Honourable Prime Minister of India, Shri Narendra Modi, during his speech at the UNGA, on 27 September 2014. United Nations General Assembly declared 21st of June as the International Day of Yoga on 11th of December in 2014. Since 2015, 21st June is always celebrated as the International Day of Yoga all over the world. This year, on the occasion of International Day of Yoga, Ministry of AYUSH has decided to invite suggestions/ideas/plans/proposals from Youth/ Youth Clubs/Senior citizens/Professionals/State Governments/Yoga Schools etc. for Celebrating the International Day of Yoga-2017, which can be undertaken on that day.

Saturday, February 18, 2017

श्री गुरुजी - द्वितीय सरसंघचालक

          राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव राव  सदाशिव राव गोलवरकर ( गुरूजी) का जन्म माघ कृष्ण 11 संवत् 1963 तदनुसार 19 फ़रवरी 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सदाशिव राव तथा माता का श्रीमती लक्ष्मीबाई  था। पिताश्री सदाशिव राव प्रारम्भ में डाक-तार विभाग में कार्यरत थे परन्तु बाद में सन् 1908 में उनकी नियुक्ति शिक्षा विभाग में अध्यापक पद पर हो गयी।
     जब मात्र दो वर्ष के थे तभी से उनकी शिक्षा प्रारम्भ हो गयी थी। पिताश्री भाऊजी जो भी उन्हें पढ़ाते थे उसे वे सहज ही इसे कंठस्थ कर लेते थे।
      सन् 1919 में उन्होंने 'हाई स्कूल की प्रवेश परीक्षा' में विशेष योग्यता दिखाकर छात्रवृत्ति प्राप्त की। सन् 1922 में 16 वर्ष की आयु में  मैट्रिक उत्तीर्ण की।
       सन् 1924 में उन्होंने नागपुरके 'हिस्लाप कॉलेज' से विज्ञान विषय में इण्टरमीडिएट की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। अंग्रेजी विषय में उन्हें प्रथम पारितोषिक मिला।
       वे भरपूर हाकी तो खेलते ही थे कभी-कभी टेनिस भी खेल लिया करते थे। इसके अतिरिक्त व्यायाम का भी उन्हें शौक था। मलखम्ब के करतब, पकड़ एवं कूद आदि में वे काफी निपुण थे।
       विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने बाँसुरी एवं सितार वादन में भी अच्छी प्रवीणता हासिल कर ली थी।

Friday, February 17, 2017

सांख्य दर्शन के 25 तत्व

आत्मा (पुरुष)
अंत:करण (4) : मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार
ज्ञानेन्द्रियाँ (5)  : नासिका, जिह्वा, नेत्र,  त्वचा,  कर्ण   कर्मेन्द्रियाँ (5)   : पाद,   हस्त,  उपस्थ, पायु,     वाक् तन्मात्रायें (5)  : गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द
महाभूत (5)    : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

श्री गुरुजी - सरसंघचालक

मई 1938 में नागपुर के संघ-शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी हो गये।  1939 फरवरी के अन्त में डा. हेडगेवार ने सिन्दी (वर्धा जिला विदर्भ प्रदेश)नामक स्थान पर संघ की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की, जिसमें श्री गुरुजी उपस्थित थे। 22 मार्च को संघ कार्य हेतु वे कलकत्ता गये।

       इस बीच डा. हेडगेवार का स्वास्थ्य गिरने लगा। श्री गुरुजी ने स्वामी श्री अखण्डानन्द जी की सेवा के समान ही डा. हेडगेवार की भी तन-मन से सेवा की। परन्तु स्वामी जी नहीं बचे किन्तु डाक्टर जी बच गये। पर वह पूर्णरूपेण स्वस्थ नहीं हो पाये। संभवत: इसी कारण से डाक्टर जी ने श्री गुरुजी की रक्षा बन्धान उत्सव के शुभ अवसर पर (दिनांक 13 अगस्त, 1939 के पावन दिवस पर ) 'सरकार्यवाह के पद पर नियुक्ति' की। यह गुरु पूजन और श्री गुरुजी का अधिकार ग्रहण साथ ही साथ हुआ। धीरे-धीरे डाक्टर जी ने अपना कार्यभार श्री गुरुजी को सौंपना प्रारम्भ कर दिया। 21 जून 1940 को मात्र 51 वर्ष की आयु में डा. हेडगेवार का देहावसान हो गया।

               13वें दिन रेशम बाग संघ स्थान पर डाक्टर साहब को श्रध्दांजलि अर्पित करते हुए मध्य प्रान्त के संघचालक माननीय बाबा साहब पाध्ये जी ने घोषणा की, "परम पूज्यनीय डा. हेडगेवार जी की इच्छानुसार श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरुजी अब अपने सरसंघचालक हो गये